Sunday, September 30, 2012

भौतिकता

बचपन से ही वो कृत्तिमता में जीता आया था,
अपनी गाड़ी में घूमना,
उपकरणों के साथ खेलना,
और एक कमरे में कैद रहना,
यही उसने सीखा था
वहाँ,
न तो सूरज की रोशनी जाती थी,
न हवा का दखल था,
न ही लोगों का प्रवेश
प्रकृति से दूर,
समाज से विखंडित,
जी रहा था वो
अब जबकि उसे बाहर निकलना पड़ा है,
सूरज की किरणे उसे चुभ रही हैं,
हवा के थपेड़े उसे भेद रहे हैं,
लोगों का साथ उसे खिन्न कर रहा है
और अब उसे अपने अतीत पर अफ़सोस हो रहा है




Thursday, September 27, 2012

वक़्त फ़ितरतन टिक कर नहीं रहता
आज वो तेरा है, तो कल मेरा भी होगा

हर रात के उस पार उजाला ही होता है
आज अँधेरा है, तो कल सवेरा भी होगा

आज जो मकां तुम्हे खंडहर सा दीखता है
वहीँ कल देखना लोगों का बसेरा भी होगा

गो उस पेड़ के क़िस्मत में आज सेहरा है
मगर कल वहीँ शादाब का डेरा भी होगा




Tuesday, September 25, 2012

तेरे दिए ग़मों को जब एक जगह रक्खा
देखा कि ये ग़ज़लों का दीवान बन गया

वो तेरा पास आ कर फिर से चले जाना
उससे ये काम और भी आसान बन गया

कैसे बताऊँ तुमको तेरा रूठ के जाना
मेरे लिए तो मौत का फरमान बन गया

हर हर्फ़ हर एक नुक्ता तुम ही तो हो शामिल
ये दीवान मेरे इश्क का पहचान बन गया  

Sunday, September 23, 2012

काश ! कभी ऐसा भी होता

काश ! कभी ऐसा भी होता
तू भी मुझसे प्रीत निभाती
काश ! कभी ऐसा भी होता
तू भी मुझको पास बुलाती
काश ! कभी...................


तेरे मेरे सपने दोनों
कदम मिलाकर साथ में चलते
दृश्य बदलता वक़्त बदलता
पर न प्रेम के सूरज ढलते
मेरे उपवन के पुष्प-कुसुम
तेरे उपवन को भी महकाती
काश ! कभी...................


मेरे अंतर की पीड़ा
बनती तेरी भी करुण कहानी
तेरे मन का पुलकित होना
मेरे खुश होने की निशानी
मधुर गीत मेरे मन का
तेरे मन को झंकृत कर जाती
काश ! कभी...................

   

Friday, September 21, 2012

बाजारवाद

 बिकता यहाँ सब कुछ है अब
 बाज़ार सबके सर चढ़ा है ,
 बादल की साजिश से अंधेरों
 का घना पहरा पड़ा है


 न मुफ्त में अब प्रेम है, न है घृणा ही
 न अन्य कोई मानवीय संवेदना ही
 ये सभी तो बाज़ार का श्रृंगार हैं अब
 व्यापारियों का इन पे भी अधिकार है अब
 आज जैसे सभी कुछ पर
 लेप पैसे का चढ़ा है
 बादल की....................... 


 शिक्षा भी अब बाज़ार में बिकने लगी है 
 ऊँचे घरों-महलों में अब टिकने लगी है 
 मूल्य का अब मांग ही से प्रीति जैसे हो 
 बस यही बाज़ार की अब नीति जैसे हो 
 एक कवि को आज फिर 
 लोगों की पीड़ा का पड़ा है 
 बादल की....................... 



Sunday, May 13, 2012

माँ

सपने में जब भी मुझे घबराहट होती है ,
माँ के चले आने की तब-तब आहट होती है

हर ख़याल-ओ-एहसास में उसकी महक शामिल ,
इबादत सी होती है कभी आदत सी होती है 

हमेशा ही मिरे गम के ओ मेरे दरमयां यारों ,
मौजूद फासले सी उसकी मूरत होती है 

बिन उसके हर इक शय रूठी सी हो जैसे ,
हर मोड़ पे गोया उसकी ज़रुरत होती है 

दुनिया में हर कोई भले ही छोड़ दे तन्हा ,
हमेशा साथ, उसके प्यार की इनायत होती है    

Wednesday, May 9, 2012


ज़ख्म कुछ ऐसे भी हैं जो वक़्त न भर पाएगा
पर उसका क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा ## 

हर पल में दम तोड़ते मुहब्बत का क्या करें 
हुस्न तो फिर भी सजाने से संवर जाएगा 

ज़र्द पड़ चुके पत्तों की अब क़िस्मत कैसे संवरेगी  
वो तो गुल है सुबह रौशनी से निखर जाएगा 

उस दिल का क्या करें, जिसे तुझसे उम्मीद थी 
अक्ल जानती थी तू इक रोज़ मुकर जाएगा

सुबह के भूले तो शाम को घर लौट गए 
जिसका न हो आशियाँ, वो बोलो किधर जाएगा

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## अहमद फ़राज़ साहब का इक शेर है,
 "आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा ,
   वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा"

Thursday, May 3, 2012

तो और बात होती

यूँ तो कई लोग मिरे आसपास हैं ,
जो तिरा साथ होता, तो और बात होती 

कई लोग जश्न में शामिल तो हैं मगर ,
जो तूं शरीक होता, तो और बात होती  

वैसे हैं कम नहीं मिरे भी ग़मगुसार* ,
पर तूं जो बाँट लेता, तो और बात होती 

मुझको सँभालने को उठे कई हाथ हैं ,
जो तिरा हाथ होता, तो और बात होती  

रूठने पे लोग यूँ मनाने आये हैं ,
जो तूं मनाने आती, तो और बात होती  


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ग़मगुसार - ग़म  दूर करने वाला 

Monday, April 30, 2012

निर्धन और कवि

मैं, तेरी कविता का इंधन हूँ ,
हाँ, निस्सहाय एक निर्धन हूँ  


जो लिख लो मुझपे कविताएँ 
जग भर प्रसिद्धि पा जाओगे ,
मेरी लाचारी वही रहे पर 
तुम तो कवि कहलाओगे 
तुम मानो या न मानो पर 
तेरी उन्नति का साधन हूँ 
हाँ, निस्सहाय............


मैंने भी देखी है दुनिया 
बहुतों को लिखते देखा है ,
बस्ती में अमीरों की मैंने 
निर्धनता बिकते देखा है 
खुद रोटी को लाचार हूँ पर 
तेरे ऐश्वर्य का माध्यम  हूँ 
हाँ, निस्सहाय............


कितनों ने किये कोड़े वादे 
कितनों ने भरोसे को तोड़ा ,
बस पुरस्कार पा जाने तक 
मुझसे सबने नाता जोड़ा 
खुद का जीवन एक पतझर है 
पर तेरी ख्याति का उपवन हूँ 
हाँ, निस्सहाय............
      

Friday, March 2, 2012

हाय! ये किसकी हाय लगी

कितने देखे थे स्वप्न मगर
टूटा सब चकनाचूर हुआ
वो एक सितारा था प्यारा
डूबा तो घर बेनूर हुआ
हाय! ये किसकी हाय लगी


मेरे स्वर का झंकार था वो
हर पल जैसे दरकार था वो
सब सपनों का विस्तार था वो
हर क्षण में मिलता प्यार था वो
उसको छीना क्यूँ ईश्वर ने
क्या मुझसे कहो कसूर हुआ
हाय! ये......................

मेरे सुख का आह्वान था वो
मेरे दुःख का अवसान था वो
उत्तम पथ का निर्माण था वो
हर क्षण में बसता नाम था वो
बस उसको माँगा था प्रभु से
जाने क्यूँ नामंजूर हुआ
हाय! ये......................

सारे मसले का हल था वो
मैं प्यासा था तो जल था वो
सुन्दर अतीत का कल था वो
आने वाला हर पल था वो
उसका ही दिया ये जीवन था
जो बिन उसके निर्मूल हुआ
हाय! ये......................
 

Wednesday, January 25, 2012

क्या वो भी घबराई होगी ?

स्मृति मेरी, उसकी आँखों 
में आँसू क्या लायी होगी ?
क्या वो भी घबराई होगी ?

उसकी जाने कितनी यादें 
अब भी चलते साथ मेरे ,
उससे की अनगिन संवादें 
अब भी रहते पास मेरे ,
पर जो अर्जी है इस दिल की 
क्या उसकी सुनवाई होगी ?
क्या वो भी...................

मैं अब भी अपने सपनों का 
आधार उसी से पाता हूँ ,
मैं अब भी अपने जीवन का 
श्रृंगार उसी से पाता  हूँ ,
पर जो साथी छूट गया 
क्या उसकी भरपाई होगी ?
क्या वो भी................ 



  

Thursday, January 19, 2012

निरस्त उत्सव

नया वर्ष है,नयी सुबह है
पर मेरे आँखों में पानी 
मेरी बातें वही पुरानी 

क्या बदला इस नए वर्ष में 
जो मैं इसका जश्न मनाऊँ,
मेरा हिस्सा कहाँ हर्ष में 
जो मैं भी शामिल हो जाऊँ,
सबके वक़्त बदलते होंगे 
मेरी रहती वही कहानी 
मेरी बातें................


क्या पाया इस नए साल में
जो मैं भी इस पर इठलाऊँ,
क्या है अंतर मेरे हाल में 
जो मैं गीत ख़ुशी का गाऊँ,
आया होगा सूरज सब घर 
पर तम की मुझपर मनमानी 
मेरी बातें................