Tuesday, July 5, 2016

कल ही घर बदलना है

घर बदल रहा हूँ
तमाम तैयारियां हो चुकी हैं
सामान बंध गया है
बस तुम्हारी यादें
बिखरी पड़ी हैं चारसू
इस कमरे , उस कमरे
सोफे, पलंग
तकिया, बिस्तर
और
जाने कहाँ-२
उसे कैसे पैक करूँ
पर छोड़ भी तो नहीं सकता
अब तुम भी तो नहीं
कि
नए घर में
नई यादें बना लूँ
इसी सोच में सारी
रात गुज़र गई
कमबख़्त
पर कोई हल नहीं निकला
कल ही घर बदलना है