Sunday, August 9, 2015

ग़ज़ल

कितना दर्द सहूँ मैं
कैसे यूँहि जिऊँ मैं

आजा दीद-फ़रामुश
कब तक राह तकूँ मैं

कब तक यूँहि वहम में
तेरे संग रहूँ मैं

दिन में तम जब फैली
किस को रात कहूँ मैं

क्यूँ मैं ऐब छुपाऊँ
जैसा हूँ वो हूँ मैं

थक कर चूर हुआ अब
कैसे और चलूँ मैं