Thursday, July 4, 2013

फ़क़ीरी

खिज़ां* का वक़्त है 
कुछ पत्ते गिर चुके हैं 
जो शेष हैं 
वो ज़र्द* हैं 
पर एक डाली
का एक फूल
अकेला,
मदमस्त 
झूम रहा है
हवा के इशारे पे
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खिज़ां* - पतझर 
ज़र्द*    -  पीला