Sunday, December 10, 2017

इंतज़ार

मैं तुम्हारे बग़ैर हो जाता हूँ
रोते बच्चों के लिए
खाने की तलाश में निकली
एक ग़रीब माँ की तरह
बेचैन, बेकल
भागता रहता हूँ
घर के एक कोने से
दूसरा कोना,
दुसरे से तीसरा
और फिर घूमकर वापिस
आ जाता हूँ उसी कोने पर
देर तक ऐसा करने के बाद भी
जब कहीं कुछ नहीं मिलता
थक कर बैठ जाता हूँ एक कोने में
स्तभ्ध, हताश
निरुपाय, निराश
शून्य को तकता
अपनी सुबह की इंतज़ार में