ये कैसा समय है, ये कैसा समां है
न कुछ दीखता है, न कुछ सूझता है
न दिन सा ही दिन है
न रातें ही शब सी
न पुलकित हुआ मन
है बारिश अजब सी
ये मन दूसरा अब, जहां ढूंढता है
न कुछ....................................
यूं लगता है जैसे
बेगाना शहर हो
तिमिर में ही जाती
हर एक रहगुज़र हो
ये मन अब हवा पर, कहाँ झूमता है
न कुछ....................................
सभी ओर नफरत
ही नफरत कि बातें
नहीं कोई करता
मुहब्बत कि बातें
ये मन प्रेम का पर, मकां ढूंढता है
न कुछ....................................
न कुछ दीखता है, न कुछ सूझता है
न दिन सा ही दिन है
न रातें ही शब सी
न पुलकित हुआ मन
है बारिश अजब सी
ये मन दूसरा अब, जहां ढूंढता है
न कुछ....................................
यूं लगता है जैसे
बेगाना शहर हो
तिमिर में ही जाती
हर एक रहगुज़र हो
ये मन अब हवा पर, कहाँ झूमता है
न कुछ....................................
सभी ओर नफरत
ही नफरत कि बातें
नहीं कोई करता
मुहब्बत कि बातें
ये मन प्रेम का पर, मकां ढूंढता है
न कुछ....................................