Wednesday, December 18, 2013

ग़ज़ल

ये *सजल नयन और तुम,
उपटा उपवन और तुम 

खोया चंदा, डूबे तारे,
रूठा सा गगन और तुम 

प्रात काल, तेरा ख़याल
अलसाया मन और तुम 

टूटी माला, बिखरे मोती
सपना *भंजन और तुम 

खाली कमरे, तन्हा *प्रहरें
सूना आँगन और तुम 

काली रातें, बेनूर सुबह  
नीरस जीवन और तुम 


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*सजल - जल सहित 
*भंजन - टूटना 
*प्रहरें   - समय 





Wednesday, December 11, 2013

नज़्म

अरसे दराज़* बाद,
आज उससे क़ैफ़ियत* पूछी
तो जवाब आया
तुम फिर आ गए
मना किया था न आने को तुमसे
मैंने कहा
कि
सांस रोके भी कोई
कितनी देर रह सकता है भला
दम फूलने लगता है
जान जाने का डर भी रहता है
बस चंद वक़्त पूरी सांस भरने दो फेफड़ों में
फिर बेशक चली जाना,
वापस,
पहले कि तरह


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*अरसे दराज़ - बहुत समय
*क़ैफ़ियत - हाल चाल