Wednesday, November 19, 2014

अपना भी नहीं था वो पराया भी नहीं था
हमराह था मेरा पे हमसाया भी नहीं था

उससे बड़े दिनों से मैं मिलने नहीं गया
कई दिनों से नज़्र वो आया भी नहीं था

दफ़अतन उस शक्ल में कुछ रंग भर गए
हाथों में मैंने कूच उठाया भी नहीं था

कहते हैं जो मिला है वो तोहफा-ए-ख़ुदा है
मैंने दुआ में हाथ उठाया भी नहीं था

फ़ितरत में बेवफ़ाई उसकी तो नहीं थी
उस शख़्स ने पर साथ निभाया भी नहीं था


Thursday, July 24, 2014

प्रणय भेंट तुमको मैं दूँगा

प्रणय भेंट तुझको  मैं दूँगा

            दुःख में मेरा साथ दिया है
            इन हाथों में हाथ दिया है
            तेरे जीवन का हर दुःख ओ
            हर ग़म मैं अपना कर लूँगा
            प्रणय भेंट तुझको............

मुझको भी सपना दिखलाया
मुझको भी जीना सिखलाया
मैं भी तेरे मन में बसता
हर सपना साकार करूंगा
प्रणय भेंट तुझको............

            खुशियों के क्षण साथ जिया है
            अनगिन यादें मुझे दिया है
            तेरे मन के हर कोने में
            मैं अपनी स्मृति भर दूंगा
            प्रणय भेंट तुझको............



Sunday, June 29, 2014

कब तक दिया जलाए रक्खूं

                  कब तक दिया जलाए रक्खूं

रात्रि पहर न बीत रही है
और निराशा जीत रही है
अपने अंदर आशा को मैं
कब तक यूंहि जगाए रक्खूं
कब तक.……………….

                   हर बार ये मन बस छला गया है
                   आग,  नशेमन जला गया है
                   अपने अंदर के धीरज को
                   कब तक यूंहि बनाए रक्खूं
                   कब तक.……………….

चंदा-तारे कब के डूबे
अब परास्त हैं सब मनसूबे
कोरी कल्पित दुनिया को मैं
कब तक यूंहि सजाए  रक्खूं
कब तक.……………….