अपना भी नहीं था वो पराया भी नहीं था
हमराह था मेरा पे हमसाया भी नहीं था
उससे बड़े दिनों से मैं मिलने नहीं गया
कई दिनों से नज़्र वो आया भी नहीं था
दफ़अतन उस शक्ल में कुछ रंग भर गए
हाथों में मैंने कूच उठाया भी नहीं था
कहते हैं जो मिला है वो तोहफा-ए-ख़ुदा है
मैंने दुआ में हाथ उठाया भी नहीं था
फ़ितरत में बेवफ़ाई उसकी तो नहीं थी
उस शख़्स ने पर साथ निभाया भी नहीं था
हमराह था मेरा पे हमसाया भी नहीं था
उससे बड़े दिनों से मैं मिलने नहीं गया
कई दिनों से नज़्र वो आया भी नहीं था
दफ़अतन उस शक्ल में कुछ रंग भर गए
हाथों में मैंने कूच उठाया भी नहीं था
कहते हैं जो मिला है वो तोहफा-ए-ख़ुदा है
मैंने दुआ में हाथ उठाया भी नहीं था
फ़ितरत में बेवफ़ाई उसकी तो नहीं थी
उस शख़्स ने पर साथ निभाया भी नहीं था