Sunday, December 10, 2017

इंतज़ार

मैं तुम्हारे बग़ैर हो जाता हूँ
रोते बच्चों के लिए
खाने की तलाश में निकली
एक ग़रीब माँ की तरह
बेचैन, बेकल
भागता रहता हूँ
घर के एक कोने से
दूसरा कोना,
दुसरे से तीसरा
और फिर घूमकर वापिस
आ जाता हूँ उसी कोने पर
देर तक ऐसा करने के बाद भी
जब कहीं कुछ नहीं मिलता
थक कर बैठ जाता हूँ एक कोने में
स्तभ्ध, हताश
निरुपाय, निराश
शून्य को तकता
अपनी सुबह की इंतज़ार में

Monday, August 14, 2017

ये जज़्बों का कैसा

ये जज़्बों का कैसा, है सूखा पड़ा अब 
एक अरसा है गुज़रा, नहीं लिक्खी मैंने 
ग़ज़ल-नज़्म कोई

जो होती थी पहले, अजब कुलबुलाहट
मेरे मन के अंदर, 
जो दीखता था कोई, मुझे रोता बच्चा,
या लगती थी अच्छी, हँसी जब किसी की  
तो लगता था जैसे,
कि लिख दूँ मैं सब कुछ ही नज़्मों मैं अपने 
मगर जाने क्यों अब, नहीं होता ये सब 
नहीं फ़र्क़ पड़ता है, मुझको कोई अब 
ये जज़्बों का कैसा............................

Thursday, April 13, 2017

ज़िन्दगी

मैं इक ख़ौफ़नाक मौत था
और तुम इक मुक़म्मल ज़िन्दगी
तुमने मुझे गले लगाया
और मैं जी उठा
शायद पहली बार मौत,
ज़िन्दगी से
हार गई

Monday, April 3, 2017

कौन है ये?

कौन है ये जो
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके
चोर क़दम से, बैठ गया है
पहलू मेरे,  सिरहाने में

कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
मैं बागों में, खेलूँ फिर से
मैं बारिश में, भीगूँ फिर से

कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
रात गुज़ारूँ, छत पर बैठे 
बेमतलब की, बातें करते 

कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
मैं जीने लग जाऊँ फिर से
मैं नज़्में लिख जाऊँ फिर से
कौन है ये जो 

Saturday, March 11, 2017

कविता-संसार कहूँ तुमको

कविता-संसार कहूँ तुमको

              मृतप्राय* भावों को तुमने
              फिर प्रेम दिया, नव प्राण दिया
              मन की खंडित आशाओं को
              सम्मान दिया, अरमान दिया
इसीलिए शब्दों में वर्णित
सोचा एक बार करूँ तुमको
कविता-संसार....................


               तुम तब आये मिलने मुझसे
               जब एकाकी था मैं पथ पर
               शीतलता दी मन को मेरे
               जब सूर्य प्रखर जीवन नभ पर
इसीलिए छंदों में चित्रित
सोचा एक बार करूँ तुमको
कविता-संसार....................


                तेरी ममता से संचारित
                निष्प्राण* देह में पुनः श्वास
                और संकट काल मिले जैसे
                मन को राहत का उच्छवास*
जीवन से कविता में उद्ध्रित*
सोचा एक बार करूँ तुमको
कविता-संसार....................



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मृतप्राय*   = मरा हुआ सा
निष्प्राण*   = मरा हुआ
उच्छवास* = उसाँस
उद्ध्रित*    = एक जगह से दूसरे जगह लेना

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Saturday, January 7, 2017

अब मैं नज़्में नहीं लिखूँगा

अब मैं नज़्में नहीं लिखूँगा

          तुम परिधि सकल कविताओं की
          अनिवार्य तत्व रचनाओं की
इसीलिए अब तेरे बिन मैं
पोली* ग़ज़लें नहीं कहूँगा
अब मैं........................


           जीवन में मधुरस था तुमसे
           ये अश्रु धार भी था तुमसे
इसीलिए इन भावों को मैं
व्यक्त कभी अब नहीं करूँगा
अब मैं........................


            अर्पित तुमको कविताएं सब
            पूरा सर्जन तेरा ही अब
अपनी पीड़ाओं को अब मैं
अपने अंदर ही रख लूँगा
अब मैं........................


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पोली* = खोखली