यूं तो हर इक लब पे हँसी की लिबास है,
वरना ये कायनात कितनी गमशानस* है
वरना ये कायनात कितनी गमशानस* है
सजदे में सर झुके ये मरासिम* की बात है,
इंसान को कहाँ वगरना इम्तिआज़* है
इंसान को कहाँ वगरना इम्तिआज़* है
लोग कहते हैं कि उल्फत जीस्त* है लेकिन,
मिलता यहाँ पे ज्यादा गम-ए-इफतिराक* है
मिलता यहाँ पे ज्यादा गम-ए-इफतिराक* है
एहसास उनको हो भले ही जी रहे हैं पर,
इंसान अब इक चीखता,चिल्लाता लाश है
इंसान अब इक चीखता,चिल्लाता लाश है
इन्सान ही कहलाता हर इक आदमी मगर,
इंसानियत तो गुजरे ज़माने कि बात है
इंसानियत तो गुजरे ज़माने कि बात है
राह हम पकड़े भले भलाई की मगर,
अब बुराई पर कहाँ उठता सवाल है
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गमशानस= गम पहचानने वाला
मरासिम= रस्म का बहुवचन
मरासिम= रस्म का बहुवचन
इम्तिआज़=तमीज़ करना
जीस्त= जीवन
जीस्त= जीवन
गम-ए-इफतिराक= जुदाई का गम