Friday, March 2, 2012

हाय! ये किसकी हाय लगी

कितने देखे थे स्वप्न मगर
टूटा सब चकनाचूर हुआ
वो एक सितारा था प्यारा
डूबा तो घर बेनूर हुआ
हाय! ये किसकी हाय लगी


मेरे स्वर का झंकार था वो
हर पल जैसे दरकार था वो
सब सपनों का विस्तार था वो
हर क्षण में मिलता प्यार था वो
उसको छीना क्यूँ ईश्वर ने
क्या मुझसे कहो कसूर हुआ
हाय! ये......................

मेरे सुख का आह्वान था वो
मेरे दुःख का अवसान था वो
उत्तम पथ का निर्माण था वो
हर क्षण में बसता नाम था वो
बस उसको माँगा था प्रभु से
जाने क्यूँ नामंजूर हुआ
हाय! ये......................

सारे मसले का हल था वो
मैं प्यासा था तो जल था वो
सुन्दर अतीत का कल था वो
आने वाला हर पल था वो
उसका ही दिया ये जीवन था
जो बिन उसके निर्मूल हुआ
हाय! ये......................