बचपन से ही वो कृत्तिमता में जीता आया था,
अपनी गाड़ी में घूमना,
उपकरणों के साथ खेलना,
और एक कमरे में कैद रहना,
यही उसने सीखा था
वहाँ,
न तो सूरज की रोशनी जाती थी,
न हवा का दखल था,
न ही लोगों का प्रवेश
प्रकृति से दूर,
समाज से विखंडित,
जी रहा था वो
अब जबकि उसे बाहर निकलना पड़ा है,
सूरज की किरणे उसे चुभ रही हैं,
हवा के थपेड़े उसे भेद रहे हैं,
लोगों का साथ उसे खिन्न कर रहा है
और अब उसे अपने अतीत पर अफ़सोस हो रहा है
अपनी गाड़ी में घूमना,
उपकरणों के साथ खेलना,
और एक कमरे में कैद रहना,
यही उसने सीखा था
वहाँ,
न तो सूरज की रोशनी जाती थी,
न हवा का दखल था,
न ही लोगों का प्रवेश
प्रकृति से दूर,
समाज से विखंडित,
जी रहा था वो
अब जबकि उसे बाहर निकलना पड़ा है,
सूरज की किरणे उसे चुभ रही हैं,
हवा के थपेड़े उसे भेद रहे हैं,
लोगों का साथ उसे खिन्न कर रहा है
और अब उसे अपने अतीत पर अफ़सोस हो रहा है