बस इसी आशा पे चलता जा रहा हूँ।
अब गगन बस *तारिकाएँ ही सजाता
इस अमावस का तिमिर गहरा रहा है,
कृष्णपक्षी चाँद तम के उस तरफ से
सबको अपनी वेदना बतला रहा है,
पूर्णमासी चाँद लगता स्वप्न सा है,
इस घड़ी मैं भी तनिक घबरा रहा हूँ,
इस समय का अंत भी निश्चय लिखा है
बस इसी आशा पे चलता जा रहा हूँ।
अब बना जीवन मरण पर्यायवाची
*यंत्रणा में लोग चिल्लाने लगे हैं,
इस तरह पसरा है पथ पर ग़म-उदासी
अब सफ़र में लोग उकताने लगे हैं,
*सिंधु के उस पार जाने क्या छिपा है,
सोच कर उद्विग्न होता जा रहा हूँ,
इस समय का अंत भी निश्चय लिखा है
बस इसी आशा पे चलता जा रहा हूँ।
निर्दयी ये विश्वव्यापी ज्वार जिसने
एक झटके में लिए हैं प्राण अनगिन,
नभ में तारे उनके होने का दिलासा
हमसे इस तूफान में जो हैं गए छिन,
ज़िन्दगी स्तब्ध, सब आशाएँ मूर्छित,
कंठ में स्वर ज़ब्त लेकिन गा रहा हूँ,
इस समय का अंत भी निश्चय लिखा है
बस इसी आशा पे चलता जा रहा हूँ।
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१. तारिकाएँ = तारे
२. यंत्रणा = दुःख, पीड़ा, कष्ट
३. सिंधु = समुद्र, सागर