चाहे जैसा भी हो जीवन,
धीरे-धीरे, रहते-रहते
एक आदत सी पड़ जाती है ।
हाँ, आदत तो पड़ जाती है
पर आदत पड़ने के क्रम में,
समझौते करते रहते हैं
पीड़ा भी सहते रहते हैं
क्रमशः एक दिन वो आता है
जब हम ख़ुद को खो देते हैं
हम जब ख़ुद को खो देते हैं
तब जाकर पड़ती है आदत
वैसे जीवन में ढलने की
वैसी राहों पे चलने की
जिसपे हमने पहले ख़ुद को
ना देखा है, ना पाया है
ना देखा है, ना पाया है
पर ये कैसा निर्मम जीवन
जिसने हमको सब दिखलाया
जिसमें हमने सोचा क्या था
और जिसमें हमने क्या पाया
हाँ, पर आदत पड़ जाती है
चाहे जैसा......................
धीरे-धीरे, रहते-रहते
एक आदत सी पड़ जाती है ।
हाँ, आदत तो पड़ जाती है
पर आदत पड़ने के क्रम में,
समझौते करते रहते हैं
पीड़ा भी सहते रहते हैं
क्रमशः एक दिन वो आता है
जब हम ख़ुद को खो देते हैं
हम जब ख़ुद को खो देते हैं
तब जाकर पड़ती है आदत
वैसे जीवन में ढलने की
वैसी राहों पे चलने की
जिसपे हमने पहले ख़ुद को
ना देखा है, ना पाया है
ना देखा है, ना पाया है
पर ये कैसा निर्मम जीवन
जिसने हमको सब दिखलाया
जिसमें हमने सोचा क्या था
और जिसमें हमने क्या पाया
हाँ, पर आदत पड़ जाती है
चाहे जैसा......................