Monday, February 26, 2018

हाँ ऐसा है लगता मुझको

हाँ ऐसा है लगता मुझको


            तुम कल्पित हो, सत्य नहीं तुम 
            एक रहस्य सा, व्यक्त नहीं तुम 
            अंतर तेरा, एक अथाह है 
            नहीं समाहित, उसमें क्या है 
ठीक-ठाक तो समझ न पाया 
पर कुछ ऐसा लगता मुझको 
हाँ ऐसा है...........................


             तुम पूरित हो, पर अशेष तुम
             सहज सरल हो, पर विशेष तुम 
             अनगिन पहलू, समाविष्ट हैं
             सब हैं अद्भुत, सब विशिष्ट हैं 
दुनिया तुमको समझ न पाई
पर है ऐसा लगता मुझको
हाँ ऐसा है......................


               सतत प्रकाशित, एक चराग तुम
               आदर्शीकृत, एक पड़ाव तुम
               नहीं है संभव, वर्णन तेरा
               किसी चित्र में, चित्रण तेरा 
रख लूँ तुझको मैं कविता में
पर मेरा मन कहता मुझको
हाँ ऐसा है.........................