ह्रदय हुआ आबाद न अब तक
कितने सावन आए गुज़रे
कितने मंज़र मन में उतरे
वादे कितने किए सभी ने
फिर वो वादे टूटे बिखरे
चाह मुझे थी तारों की पर
मिला मुझे आकाश न अब तक
ह्रदय हुआ............................
कितने लोग सफर में आये
कितने मिलकर हुए पराये
अकस्मात ही, पूर्व समय से
कुछ जो फूल खिले, मुरझाए
चाह मुझे उन्मत्त रहूँ पर
मिला मुझे उन्माद न अब तक
ह्रदय हुआ............................
कितनी खुशियां फिसली छू कर
सपने ठहरे बस कुछ क्षण भर
जीवन मेरा चलता जैसे
निर्जन राही दुर्गम पथ पर
चाह मुझे थी साथी की पर
मिला किसी का हाथ न अब तक
ह्रदय हुआ............................
कितने सावन आए गुज़रे
कितने मंज़र मन में उतरे
वादे कितने किए सभी ने
फिर वो वादे टूटे बिखरे
चाह मुझे थी तारों की पर
मिला मुझे आकाश न अब तक
ह्रदय हुआ............................
कितने लोग सफर में आये
कितने मिलकर हुए पराये
अकस्मात ही, पूर्व समय से
कुछ जो फूल खिले, मुरझाए
चाह मुझे उन्मत्त रहूँ पर
मिला मुझे उन्माद न अब तक
ह्रदय हुआ............................
कितनी खुशियां फिसली छू कर
सपने ठहरे बस कुछ क्षण भर
जीवन मेरा चलता जैसे
निर्जन राही दुर्गम पथ पर
चाह मुझे थी साथी की पर
मिला किसी का हाथ न अब तक
ह्रदय हुआ............................