Thursday, December 13, 2018

ग़ज़ल


यूँहि मेरे साथ वो चलता चला गया
नज़्म में हरेक उतरता चला गया

था कोई तिलिस्म* या उसकी थी रहबरी*
तीरगी* में नूर जो भरता चला गया

उसके होंठ उसकी नज़र और वो छुअन
नश्शा रफ़्ता-रफ़्ता ये बढ़ता चला गया

कैसा था वो राहगुज़र* कैसा था समा
आँखों में वो चाँद उतरता चला गया

बँध सका हुदूद* में ये आज तक कहाँ
इश्क़ का ख़ुमार था चढ़ता चला गया

कैसा दौर है ये हुकूमत का देश में
नाम हर नगर का बदलता चला गया


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तिलिस्म* = जादू
रहबरी* = राह दिखाना, Comanionship, Guidance
तीरगी* = अंधेरा
राहगुज़र* = रास्ता
हुदूद* = सीमा