Friday, August 30, 2013

जब से सपना विस्तार हुआ

जब से सपना विस्तार हुआ
मानो जीवन बेकार हुआ

छोटा मकान था बेहतर था
क्यूँ विस्तृत पारावार* हुआ

सपनों की दुनिया जगमग थी
क्यूँ सच का निष्ठुर वार हुआ

मेरे इस शांत नशेमन* में
क्यूँ हलचल बारम्बार हुआ

न कुछ पा जीवन सुखमय था
सब पा जीवन निस्सार* हुआ



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पारावार* -  सीमा, हद
नशेमन*  -  विश्राम करने का एकांत स्थल
निस्सार* - जिसमें कोई रोचक तत्व न हो

Saturday, August 24, 2013

मुझे नहीं पहचान सका है

मुझे नहीं पहचान सका है

जब तक मन था गले लगाया
                दिन विपरीत हुआ ठुकराया
मेरे अन्तर की अथाह प्रियता* को पर न छान सका है
                                         मुझे नहीं पहचान सका है


प्रणय* गीत मुझको सिखलाया
                हँसकर मेरा मन बहलाया
मेरे अन्तर की चोटिल पीड़ा को पर न जान सका है
                                     मुझे नहीं पहचान सका है


सघन धुंध और कोहरा छाया
                पल-पल मेरा जी घबराया
इस विपरीत घड़ी में अपना मुझे न कोई मान सका सका है
                                                मुझे नहीं पहचान सका है



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प्रियता* - प्रेम का भाव
प्रणय*   - प्रेम