उलझन के दिन बीत रहे हैं
दिन उलझन में बीत रहे हैं
एक पल में मैं आशावादी
अगले पलक निराशावादी ,
एक पल जो मानूं ऊंचाई
अगले क्षण वो गहरी खाई
कोरी आशा , मृगतृष्णा के
निष्ठुर दिन वे धूर्त रहे हैं
दिन उलझन में........
एक पल को मैं हार से डरता
अगले क्षण प्रतिकार हूँ करता ,
एक पल कोई लगता प्यारा
अगले पल न रहे हमारा
कभी जटिलता,कभी कठिनता
दिन ये बड़े अविनीत* रहे हैं
दिन उलझन में......
एक पल लक्ष्य है अपना लगता
अगले क्षण सब सपना लगता ,
एक पल को लगता है सवेरा
अगले क्षण बस घोर अँधेरा
साक्षी इस दुविधा के मेरे
कई छंद ओ गीत रहे हैं
दिन उलझन में........
................................................................................
अविनीत - निष्ठुर,निर्दयी
दिन उलझन में बीत रहे हैं
एक पल में मैं आशावादी
अगले पलक निराशावादी ,
एक पल जो मानूं ऊंचाई
अगले क्षण वो गहरी खाई
कोरी आशा , मृगतृष्णा के
निष्ठुर दिन वे धूर्त रहे हैं
दिन उलझन में........
एक पल को मैं हार से डरता
अगले क्षण प्रतिकार हूँ करता ,
एक पल कोई लगता प्यारा
अगले पल न रहे हमारा
कभी जटिलता,कभी कठिनता
दिन ये बड़े अविनीत* रहे हैं
दिन उलझन में......
एक पल लक्ष्य है अपना लगता
अगले क्षण सब सपना लगता ,
एक पल को लगता है सवेरा
अगले क्षण बस घोर अँधेरा
साक्षी इस दुविधा के मेरे
कई छंद ओ गीत रहे हैं
दिन उलझन में........
................................................................................
अविनीत - निष्ठुर,निर्दयी