फिर आज तुम्हें हैं याद किया
मेरे टूटे-बिखरे सपने
पुष्पित होने को आकुल हैं
मेरे अन्दर अनगिनत भाव
तुमसे मिलने को व्याकुल हैं
इस हसरत में, इस उलझन में
है वक़्त बहुत बर्बाद किया
फिर आज.………………
मन में पीड़ा का प्रबल ताप
उस पर तेरा निष्ठुर प्रहार
पतझर का मौसम हुआ अटल
न कभी इधर आती बहार
इस दुर्दिन के क्षण को मैंने
फिर सोच तुम्हें आबाद किया
फिर आज.………………
तुम पास रहो या दूर रहो
मन में तेरा स्थान अटल
अब भी तेरा सुमिरन* करके
चित मेरा हो जाता चंचल
मन ने मेरे तेरे मन से
अविरत* अविरल* संवाद किया
फिर आज.………………
.................................................
सुमिरन* - स्मरण, चर्चा
अविरत* - अनवरत, निरंतर
अविरल* - सघन
मेरे टूटे-बिखरे सपने
पुष्पित होने को आकुल हैं
मेरे अन्दर अनगिनत भाव
तुमसे मिलने को व्याकुल हैं
इस हसरत में, इस उलझन में
है वक़्त बहुत बर्बाद किया
फिर आज.………………
मन में पीड़ा का प्रबल ताप
उस पर तेरा निष्ठुर प्रहार
पतझर का मौसम हुआ अटल
न कभी इधर आती बहार
इस दुर्दिन के क्षण को मैंने
फिर सोच तुम्हें आबाद किया
फिर आज.………………
तुम पास रहो या दूर रहो
मन में तेरा स्थान अटल
अब भी तेरा सुमिरन* करके
चित मेरा हो जाता चंचल
मन ने मेरे तेरे मन से
अविरत* अविरल* संवाद किया
फिर आज.………………
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सुमिरन* - स्मरण, चर्चा
अविरत* - अनवरत, निरंतर
अविरल* - सघन