Monday, April 30, 2012

निर्धन और कवि

मैं, तेरी कविता का इंधन हूँ ,
हाँ, निस्सहाय एक निर्धन हूँ  


जो लिख लो मुझपे कविताएँ 
जग भर प्रसिद्धि पा जाओगे ,
मेरी लाचारी वही रहे पर 
तुम तो कवि कहलाओगे 
तुम मानो या न मानो पर 
तेरी उन्नति का साधन हूँ 
हाँ, निस्सहाय............


मैंने भी देखी है दुनिया 
बहुतों को लिखते देखा है ,
बस्ती में अमीरों की मैंने 
निर्धनता बिकते देखा है 
खुद रोटी को लाचार हूँ पर 
तेरे ऐश्वर्य का माध्यम  हूँ 
हाँ, निस्सहाय............


कितनों ने किये कोड़े वादे 
कितनों ने भरोसे को तोड़ा ,
बस पुरस्कार पा जाने तक 
मुझसे सबने नाता जोड़ा 
खुद का जीवन एक पतझर है 
पर तेरी ख्याति का उपवन हूँ 
हाँ, निस्सहाय............