Friday, March 27, 2020

कोट



एक कोट जो अब
तक़रीबन एक हफ़्ते से
टंगा हुआ है खूँटी पर
सिलवटों पर अब जिसकी
धूल की कई परतें जम गई हैं

फ़ुर्सत के पहले दो-तीन दिनों में उसने आराम किया
कोहनी से अपनी बाज़ूओं को
मोड़कर छाती तक ले गया
अपने फेफड़ों में राहत की लम्बी सांसें भरी
और देर तक सोता रहा

पर यूँ है कि उसे,
रोज़ निकलने कि इक आदत सी रही है
हाँ, बहुत इस्तेमाल होने पर
कभी-कभी शिक़ायत किया करता था
दबी आवाज़ में ,
पर फ़ितरतन इतना आराम-पसंद कभी न रहा

कल मैंने देखा कि उसके बाज़ू फड़फड़ा रहे थे
धूप को, आकाश को,
अब्र को, माहताब को,
और *मंज़र-ए-आम देखने को
शायद

हाँ, उसे रोज़ सैकड़ों लोगों से मिलने की आदत सी रही है
और आदत रही है उसे एक शरीर पहनने की 
अब उसे ये ख़ालीपन खाए जा रहा है

टंगा है वो *मुंजमिद
उस सुब्ह की आस में
जब उसपे जमे धूल साफ़ किये जाएंगे
और दिया जाएगा उसे वापिस वो शरीर
जिसके बाज़ू और छाती
ठीक उसके नाप के बने हैं
और जिसे पहनकर वो निकलेगा बाहर
*तलाश-ए-रिज़्क़ में
पहले कि तरह

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*मंज़र-ए-आम = खुला दृश्य
*मुंजमिद = जमा हुआ
*तलाश-ए-रिज़्क़ = रोज़गार की तालाश