Sunday, August 9, 2015

ग़ज़ल

कितना दर्द सहूँ मैं
कैसे यूँहि जिऊँ मैं

आजा दीद-फ़रामुश
कब तक राह तकूँ मैं

कब तक यूँहि वहम में
तेरे संग रहूँ मैं

दिन में तम जब फैली
किस को रात कहूँ मैं

क्यूँ मैं ऐब छुपाऊँ
जैसा हूँ वो हूँ मैं

थक कर चूर हुआ अब
कैसे और चलूँ मैं


Wednesday, July 22, 2015

मैं पथ पर बढ़ता जाऊंगा.

मैं पथ पर बढ़ता जाऊंगा

                माना की विपदा सर पर है
                ना ही चंदा अम्बर पर है
                फिर भी मन में विश्वास लिए
                माला मैं गहता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

                माना की तम है परम प्रबल
                दिखता सूरज भी है निर्बल
                फिर भी मुख पर उल्लास लिए
                पीड़ा मैं सहता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

                माना बाधाएँ हैं अनगिन
                व सफ़र है करना तेरे बिन
                फिर भी मैं लक्ष्याभास लिए
                सीढ़ी मैं चढ़ता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

शायद

शौक है न बहुत
चीज़ें लौटने का तुम्हे
लौटा देना चाहती हो
वो हर इक चीज़
जो तआल्लुक़ रखती है मुझसे,
तो,
जान भी लौटाती जाओ न
जो उधार के कुछ वक़्त के बदले
गिरवी रक्खी थी
तुम्हारे पास
सालों पहले

तुमने ही तो मांगी थी
ज़िद करके
और वायदा भी किया था
कि वापास कर दूँगी
रफ़ू करके
जाते हुए वो वापस तो करो
सांसें अब डूबती जा रही हैं

मरते हुए देख सकोगी मुझको
नहीं न 
शायद !

Friday, January 30, 2015

तुम बदल गई सब बदल गया

 तुम बदल गई, सब बदल गया

                      स्वप्न-जनित एक घर था वो
                      जो हम दोनों का डेरा था
                      हो प्रात काल वा रात्रि प्रहर
                      हरक्षण जैसे कि सवेरा था
अब राहें क्यों अलग हुई
तुम किधर गई, मैं किधर गया
तुम बदल………………


                      बोलो तुमसे कब क्या माँगा
                      बस तनिक प्रेम अभिलाषी था
                      तुम चंचल थी, मनमोहक थी
                      मैं सम्मोहित मितभाषी था
क्यों तुमने ठिकाने बदल लिए
तुम इधर गई मैं उधर गया
तुम बदल………………

                       तुम पहले दीप्त किरण सी थी
                       फिर स्याह रात तन्हाई सी
                       पहले थी भोर की शांत पवन
                       फिर विद्रोहक पुरवाई सी
इस प्रेम विलोभन क्रीड़ा में
तुम निखर गई, मैं बिखर गया
तुम बदल………………