Friday, March 31, 2023

जीवन-२

नहीं समझ आता है मुझको 

क्या है जीवन, क्यूँ है जीवन 


                 अब तक जो मैं करता आया 

                 रहा नियंत्रण उसपे मेरा 

                 या सब पहले से ही तय था 

                 किधर अँधेरा, किधर सवेरा 

                 कैसे उजाले आ जाते हैं 

                 अन्धकार फिर छा जाता है

                 नहीं समझ.......................


किस जानिब से ख़ुशियाँ आती 

किधर से चलकर दुःख आता है 

क्यूँ ये बहारें आ जाती हैं 

क्यूँ फिर पतझर छा जाता है 

जब-जब लगता सुलझ रहा है 

तब-तब और है उलझा जीवन 

नहीं समझ...........................


                  कभी-कभी लगता है ये भी 

                  जिसने जो बोया वो पाया

                  अगले क्षण पर नज़र पड़ी तो 

                  सड़क पे रोता बच्चा पाया 

                  जब लगता अब दीख रहा है 

                  उसी समय धुंधलाया दर्पण 

                  नहीं समझ.......................


बहुत देर तक बैठे सोचा 

किस यात्रा पर निकले हैं हम 

कहाँ है जाना, किधर से जाना 

क्या है प्रयोजन निकले हैं हम 

लगातार जब चलते-चलते 

एक दिन सब कुछ रुक जाना है 

नहीं समझ...........................