तुम बदल गई, सब बदल गया
स्वप्न-जनित एक घर था वो
जो हम दोनों का डेरा था
हो प्रात काल वा रात्रि प्रहर
हरक्षण जैसे कि सवेरा था
अब राहें क्यों अलग हुई
तुम किधर गई, मैं किधर गया
तुम बदल………………
बोलो तुमसे कब क्या माँगा
बस तनिक प्रेम अभिलाषी था
तुम चंचल थी, मनमोहक थी
मैं सम्मोहित मितभाषी था
क्यों तुमने ठिकाने बदल लिए
तुम इधर गई मैं उधर गया
तुम बदल………………
तुम पहले दीप्त किरण सी थी
फिर स्याह रात तन्हाई सी
पहले थी भोर की शांत पवन
फिर विद्रोहक पुरवाई सी
इस प्रेम विलोभन क्रीड़ा में
तुम निखर गई, मैं बिखर गया
तुम बदल………………
स्वप्न-जनित एक घर था वो
जो हम दोनों का डेरा था
हो प्रात काल वा रात्रि प्रहर
हरक्षण जैसे कि सवेरा था
अब राहें क्यों अलग हुई
तुम किधर गई, मैं किधर गया
तुम बदल………………
बोलो तुमसे कब क्या माँगा
बस तनिक प्रेम अभिलाषी था
तुम चंचल थी, मनमोहक थी
मैं सम्मोहित मितभाषी था
क्यों तुमने ठिकाने बदल लिए
तुम इधर गई मैं उधर गया
तुम बदल………………
तुम पहले दीप्त किरण सी थी
फिर स्याह रात तन्हाई सी
पहले थी भोर की शांत पवन
फिर विद्रोहक पुरवाई सी
इस प्रेम विलोभन क्रीड़ा में
तुम निखर गई, मैं बिखर गया
तुम बदल………………