काव्यांजलि
Thursday, April 13, 2017
ज़िन्दगी
मैं इक ख़ौफ़नाक मौत था
और तुम इक मुक़म्मल ज़िन्दगी
तुमने मुझे गले लगाया
और मैं जी उठा
शायद पहली बार मौत,
ज़िन्दगी से
हार गई
Monday, April 3, 2017
कौन है ये?
कौन है ये जो
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके
चोर क़दम से, बैठ गया है
पहलू मेरे, सिरहाने में
कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
मैं बागों में, खेलूँ फिर से
मैं बारिश में, भीगूँ फिर से
कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
रात गुज़ारूँ, छत पर बैठे
बेमतलब की, बातें करते
कौन है ये जो
लगता है यूँ, देखके जिसको
मैं जीने लग जाऊँ फिर से
मैं नज़्में लिख जाऊँ फिर से
कौन है ये जो
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