Monday, April 15, 2019

फिर जाने क्यों इठलाता है

ये सृष्टि व्यवस्था *विप्लव कर
मानव विध्वंस बुलाता है
फिर जाने क्यों इठलाता है

              ये चाँद, गगन, ब्रह्मांड सकल
              अपने अपने स्थान अटल
              उस पर फिर सूरज गगन मध्य
              आता तम में आलोक लिए
पर मानव ऐसा मूढ़ जीव
इस पद्धति को झुठलाता है
फिर जाने.......................

               अनगिन तत्वों से मिलकर जग
               रहने लायक यह हुआ है तब
               उस पर फिर कितने जीव-जन्तु
               है सबका कुछ अपना महत्व
पर मानव *मिथ्यागर्व चूर
खुद को सर्वोच्च बताता है
फिर जाने.......................

               ये नदी, पेड़, वायु, पर्वत
               सब दिखते हैं अब *मर्माहत
               बारिश, मौसम, जंगल, उपवन
               सम्पूर्ण व्यवस्था उथल-पुथल
मानव इसका शोषण करके
खुद अपनी चिता सजाता है
फिर जाने.......................

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*विप्लव    = नष्ट, बर्बाद
*मिथ्यागर्व = झूठा अभिमान
*मर्माहत   = चोटिल