जिक्र-ए-खयालात का मौका तो दिया होता
यूँ भी क्या था जाना इत्तला* तो किया होता
हम भी समंदर की वो गहराई माप लेते
आँखों में अपने खोने का मौका जो दिया होता
हम जीस्त* काट लेते उस ख़याल के सहारे
मिलने का कभी तुमने वादा तो किया होता
बदनाम हम न होते,कुचों* में नुक्कड़ों पर
गर बज़्म* में तुमने हमें रुसवा* न किया होता
दीवान दर्द-ओ-ग़म का मुक़म्मल* न होने पाता
गर कर गिरफ़्त इश्क में धोखा न दिया होता
........................................................................................
नाला-ए-दिल - ह्रदय से निकलने वाला आर्तनाद
इत्तला - सूचना
जीस्त - ज़िन्दगी
कुचों - गलिओं
बज़्म - महफ़िल
रुसवा - अपमानित
मुक़म्मल - पूरा