Sunday, May 13, 2012

माँ

सपने में जब भी मुझे घबराहट होती है ,
माँ के चले आने की तब-तब आहट होती है

हर ख़याल-ओ-एहसास में उसकी महक शामिल ,
इबादत सी होती है कभी आदत सी होती है 

हमेशा ही मिरे गम के ओ मेरे दरमयां यारों ,
मौजूद फासले सी उसकी मूरत होती है 

बिन उसके हर इक शय रूठी सी हो जैसे ,
हर मोड़ पे गोया उसकी ज़रुरत होती है 

दुनिया में हर कोई भले ही छोड़ दे तन्हा ,
हमेशा साथ, उसके प्यार की इनायत होती है    

Wednesday, May 9, 2012


ज़ख्म कुछ ऐसे भी हैं जो वक़्त न भर पाएगा
पर उसका क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा ## 

हर पल में दम तोड़ते मुहब्बत का क्या करें 
हुस्न तो फिर भी सजाने से संवर जाएगा 

ज़र्द पड़ चुके पत्तों की अब क़िस्मत कैसे संवरेगी  
वो तो गुल है सुबह रौशनी से निखर जाएगा 

उस दिल का क्या करें, जिसे तुझसे उम्मीद थी 
अक्ल जानती थी तू इक रोज़ मुकर जाएगा

सुबह के भूले तो शाम को घर लौट गए 
जिसका न हो आशियाँ, वो बोलो किधर जाएगा

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## अहमद फ़राज़ साहब का इक शेर है,
 "आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा ,
   वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा"

Thursday, May 3, 2012

तो और बात होती

यूँ तो कई लोग मिरे आसपास हैं ,
जो तिरा साथ होता, तो और बात होती 

कई लोग जश्न में शामिल तो हैं मगर ,
जो तूं शरीक होता, तो और बात होती  

वैसे हैं कम नहीं मिरे भी ग़मगुसार* ,
पर तूं जो बाँट लेता, तो और बात होती 

मुझको सँभालने को उठे कई हाथ हैं ,
जो तिरा हाथ होता, तो और बात होती  

रूठने पे लोग यूँ मनाने आये हैं ,
जो तूं मनाने आती, तो और बात होती  


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ग़मगुसार - ग़म  दूर करने वाला