Wednesday, July 22, 2015

मैं पथ पर बढ़ता जाऊंगा.

मैं पथ पर बढ़ता जाऊंगा

                माना की विपदा सर पर है
                ना ही चंदा अम्बर पर है
                फिर भी मन में विश्वास लिए
                माला मैं गहता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

                माना की तम है परम प्रबल
                दिखता सूरज भी है निर्बल
                फिर भी मुख पर उल्लास लिए
                पीड़ा मैं सहता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

                माना बाधाएँ हैं अनगिन
                व सफ़र है करना तेरे बिन
                फिर भी मैं लक्ष्याभास लिए
                सीढ़ी मैं चढ़ता जाऊँगा
                मैं पथ पर.………………..

शायद

शौक है न बहुत
चीज़ें लौटने का तुम्हे
लौटा देना चाहती हो
वो हर इक चीज़
जो तआल्लुक़ रखती है मुझसे,
तो,
जान भी लौटाती जाओ न
जो उधार के कुछ वक़्त के बदले
गिरवी रक्खी थी
तुम्हारे पास
सालों पहले

तुमने ही तो मांगी थी
ज़िद करके
और वायदा भी किया था
कि वापास कर दूँगी
रफ़ू करके
जाते हुए वो वापस तो करो
सांसें अब डूबती जा रही हैं

मरते हुए देख सकोगी मुझको
नहीं न 
शायद !