सोचा था सपनों से सुन्दर, अपना दर्पण होगा
सूरज के ऊपर किसने ये, काली चादर डाली
अभिलाषा थी देखूँगा मैं, प्रात-काल की लाली
सूर्य-किरण से आलोकित फिर, कब जन-जीवन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
अम्बर के सज्जा आभूषण, किसने हाय उतारे
सूने नभ को कब तक देखूँ, बिन चंदा बिन तारे
*चंद्र-तारिकाओं से जगमग, कब गगनांगन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
उपवन के अंतस में जाने, किसने आग लगाई
मुरझाई वल्लरियाँ ऐसी, कभी कुसुम ना आई
पुष्प-सुमन से सज्जित शोभित, फिर कब उपवन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
सूरज के ऊपर किसने ये, काली चादर डाली
अभिलाषा थी देखूँगा मैं, प्रात-काल की लाली
सूर्य-किरण से आलोकित फिर, कब जन-जीवन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
अम्बर के सज्जा आभूषण, किसने हाय उतारे
सूने नभ को कब तक देखूँ, बिन चंदा बिन तारे
*चंद्र-तारिकाओं से जगमग, कब गगनांगन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
उपवन के अंतस में जाने, किसने आग लगाई
मुरझाई वल्लरियाँ ऐसी, कभी कुसुम ना आई
पुष्प-सुमन से सज्जित शोभित, फिर कब उपवन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................
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चंद्र-तारिकाओं = चाँद-तारे
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