Thursday, September 3, 2020

सपनों से सुन्दर अपना दर्पण

सोचा था सपनों से सुन्दर, अपना दर्पण होगा


                 सूरज के ऊपर किसने ये, काली चादर डाली
                 अभिलाषा थी देखूँगा मैं, प्रात-काल की लाली
                 सूर्य-किरण से आलोकित फिर, कब जन-जीवन होगा
                 सोचा था सपनों से सुन्दर.....................


अम्बर के सज्जा आभूषण, किसने हाय उतारे
सूने नभ को कब तक देखूँ, बिन चंदा बिन तारे
*चंद्र-तारिकाओं से जगमग, कब गगनांगन होगा
सोचा था सपनों से सुन्दर.....................


                 उपवन के अंतस में जाने, किसने आग लगाई
                 मुरझाई वल्लरियाँ ऐसी, कभी कुसुम ना आई
                 पुष्प-सुमन से सज्जित शोभित, फिर कब उपवन होगा
                 सोचा था सपनों से सुन्दर.....................


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चंद्र-तारिकाओं = चाँद-तारे 

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